Kiran Mishra

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लेखनी कहानी -01-Jul-2023

चुपके-चुपके रात दिन आंसू बहाना याद है-

चुपके-चुपके रात दिन आंसू बहाना याद है
दूर जाके फिर न आना नज़रें चुराना याद है

डाकिया न चिट्ठी ही भेजे ये गली सूनी रही
झूठ-मूठ हमें चांद कह कर बहलाना याद है

कितने सच्चे कितने अच्छे तुम मेरे महबूब थे
मुझे आंधियों में रेत के घर में छिपाना याद है

दरख़्तों की टूटी डली पे भंवरा बन मंडराते रहे
हल्के धुंधले मौसम में नज़रें मिलाना याद है

बंदिशों का तिलिस्म भारी निकलना मुश्किल था
मखमली गलीचे बिछा चुपचाप जाना याद है

महफ़िल में ख़ामोशी का सबब बन चले जाना
फिर रात भर दिवानों सा तुझको ढूँढना याद है॥
किरण मिश्रा #निधि#
आधेअधूरे मिसरे / प्रसिद्ध पंक्तियाँ

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3 Comments

बेहतरीन

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Kavita Jha

15-Aug-2023 04:23 PM

बहुत सुंदर 👍👌

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Abhinav ji

15-Aug-2023 08:51 AM

Very nice

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